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कलयुग नफरत की पाठशाला है




कलयुग नफरत की पाठशाला है

हर युग में भाईचारा से रहते थे जो
आज नफरतों की आग लगाते है वो
भाई को भाई से लड़ा रहा है
कलयुग नफरत की पाठशाला है।
सोचता हूं परिंदों को देखकर
मैं भी आसमां की शैर कर आऊं
पर साजिशों के चलतें मैं
आसमान में उड़ने के काबिल नही हूं
कलयुग नफरत की पाठशाला है।
इंसान बनकर आया है जो जग में
इस कलयुग में वो,शैतान बनने को चला है
हर रिश्तों में खूब दरारें बढ़ा रहा है
आपस में ही सबकों लड़ा रहा है
कलयुग नफरत की पाठशाला है।
क्यों अकड़ कर तू अब भी चल रहा है
तेरे हाथों में क्या कुछ है
इंसानियत को इंसान से लड़ा रहा है
कलयुग नफरत की पाठशाला है।
गुमसुम रहों तो बातों का दम घुटता है
बेकद्रो की ही आजकल हो रही है कदर
आसूं की कीमत आजकल कहां समझते है
फूट डालने की पाठ पढ़ा रहा है
कलयुग नफरत की पाठशाला है।

नूतन लाल साहू



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2 Comments

शानदार लिखा

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Haaya meer

26-May-2023 09:30 AM

Bahut khoob

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